Thursday, 19 March 2015

बघेलखंड की समृद्ध लोककलाएं



बघेलखंड अपनी समृद्ध लोकसांस्कृतिक परंपरा के लिए जाना जाता है. इस परंपरा के संरक्षण एवं विकास को लक्ष्य मानकर चलने वाली सीधी की संस्था 'इंद्रवती नाट्य समिती' द्वारा कराये जाने वाले सीधी लोकोत्सव में बघेलखंड की लोकशैलियों को प्रस्तुत किया गया. प्रख्यात रंगकर्मी एवं मध्य प्रदेश राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक संजय उपाध्याय जी अपने छात्रों के साथ शैक्षणिक भ्रमण के उद्देश्य से बघेलखंड की लोककलाओं को जानने आये. संजय उपाध्याय जी ने बघेलखंड को लोककलाओं की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध माना. सीधी के रंगकर्मी एवं इंद्रवती नाट्य समिती के संचालक नीरज कुंदेर जी के अथक प्रयास से आज बघेलखंड की लोककलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.

-कविता सिंह चौहान 

कोलदहका



कोलदहका के कलाकारों से नृत्य सिखती कविता सिंह चौहान 



कोलदहका प्रस्तुत करती कलाकार 

यह कोल जनजाति द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. इसमें स्त्री और पुरुष में सवाल जवाब चलता है. पुरुष वर्ग वादक होते हैं तथा स्त्रियाँ नृत्य करती है.
“देखा गोईंया बारिऊ से भवरा उडि गा,
न कुछ दई गा, न कुछ लई गा
देखा गोईंया बारिऊ से भवरा उडि गा.”   

- कविता सिंह चौहान 

करमा नृत्य





यह गोंड व बैगा जाति का जनजातीय नृत्य है. यह स्त्री-पुरुष का मिला लोक नृत्य है. मादल और ढोलक लोकवाद्य का प्रयोग किया जाता है.
माता मरे से जेवन छुटि गा, पिता मरे संसारा,
भाई मरे से बहिया छुटि गा, बहिन मरे परिवारा
रे समझावन वाला, रोवल सुघडन काया रे समझावन वाला रोवल रे

- कविता सिंह चौहान 

बसदेवा गाथागायन



                                     
यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, व महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में अलग- अलग शैलियों में एक विशेष जाति द्वारा गयी जाने वाली गाथा गायन परंपरा के रूप में प्रचलन में है. मुख्यतः बघेलखंड क्षेत्र में सीधी जिले में स्थित ‘जमुआर’ गावं में निवासरत जाति समूह के द्वारा विशुद्धतम रूप से प्रस्तुत की जाती है. बसुदेवा अपना संबंध बासुदेव कृष्ण व उनकी जाति परंपरा से मानते हैं. बासुदेव एक गायन शैली विशेष है जिसमे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में प्रचलित व लोक प्रसिद्द नायकों की कथाएं गयी जाती है. इस गाथा गायन शैली में निम्न लोक नायकों की गाथाएं गाई जाती है.
श्रवण गाथा, चंदैनी, राजा हरिश्चंद्र, गोपी चंदा, मोरध्वज कथा, मोती कुंवर, शिव विवाह, भर्तृहर, कृष्ण प्रेम, कबीर की उलटवासियाँ.
वाद्य यंत्र- पैजना, खंजनी, खुटखुटी, सारंगी.
राम नाम का लइला नाम, सब होई पूरन हो काम जय गंगे हर गंगे
घर मा सरवन बेटा रहयं, माई बाप के सेवा करय जय गंगे हर गंगे.

- कविता सिंह चौहान 

Thursday, 26 February 2015

बघेलखंड का परिचय

बघेलखंड सृष्टि के विकसित काल से ही संस्कारों तथा लोककलाओं से परिपूर्ण प्रकाशित है. पर्वतों, घनघोर. जंगलों और नदियों में बसे होने के कारण यह साधकों की तपोभूमि बना. पुराणों में यह ‘कारूष जनपद’ के नाम से जाना जाता रहा है. जो संस्कृति समृद्ध रहा है.
बघेलखंड ( सीधी, रीवा, सतना, शहडोल, सिंगरौली ) क्षेत्र की तमाम लोक कलारूपों में किसी विशाल परंपरा में अब तक किसी विशेष लोकनाट्य परंपरा को नही देखा गया. यहाँ लिखित साहित्य की अपेक्षा मौखिक परंपरा रूप में ज्यादा समृद्ध है. बघेलखंड आदिवासी प्रधान क्षेत्र के साथ आदिवासियों की नृत्य व जातीय संस्कार गीतों व कर्मकांडो से संबंधित संस्कृति की मजबूत परम्परा को लिए हुए है.
बघेलखंड की लोक शैलियाँ- बघेलखंड लोकशैलियों में मुख्यतः गाथा गायन परंपरा रही है. तथा आदिवासी क्षेत्र होने के कारण यहाँ जातीय गीत तथा नृत्य की प्रथा है. जैसे जातीय गीतों में मुख्य रूप से चमरौही, कोहरौही, बरिहौडी, गोंडी, बादीगिरी, बसदेवा, बैगयन, ढीमरहाई गीत, कोलनहाई, घमसाही, आदि. यह जातिगत परंपरा के अंतर्गत यह गीत आते है. तथा लोक गाथा परंपरा जिसमे ऐतिहासिक, पौराणिक कथानक गाथा  गायन के रूप में गयी जाती है.
जिसमे मुख्य रूप से है:
·       बसुदेवा गाथा गायन परंपरा
·       ललना गाथा गायन परंपरा
·       पदुम कन्हैया गाथा गायन परंपरा
·       चंदनुआ गाथा गायन परंपरा
·       चंदैनी गाथा गायन परंपरा
·       हरीश चन्द्र गाथा गायन परंपरा
·       ढोलमारू गाथा गायन परंपरा
·       आल्हा गाथा गायन परंपरा
·       बंजोरवा गाथा गायन परंपरा
·       छाहुर गाथा गायन परंपरा
इसके अलावा लोक कथा की परंपरा यहाँ मौखिक रूप में प्रचलित है. जैसे देवी-देवता, नैतिक शिक्षा, जातीय कथा, रजा-रानी, पौराणिक, ऐतिहासिक आदि तथा लोकोक्ति व कहावतें कहने की प्रथा भी यहाँ मौजूद है.
 लोकगीतों में जैसे संस्कार गीत- सोहर, बधाई, उपनयन, कनछेदन
विवाह गीत- तेल माटी, मंडपाछादन, सोहाग, दादर, परछन, पूरी गीत, कुआँ गीत, द्वारपूजा, अंजुरी, गारी, विदाई, कन्यादान, मंगलगीत आदि.
श्रम गीत- ददरिया टप्पा, मलेलावा, झोलईया.
कृषि गीत- कजरी, हिन्दुली, चैती, सावन झुला गीत आदि.
पर्व गीत- होली गीत, फाग, मंगलगीत.
अनुष्ठानिक गीत- भगत, भोलेदानी के गीत, स्थानीय देवताओं के गीत आदि.
यात्रा गीत- बम्बुलिया, झोलईया आदि.
व्यवसाय गीत- बंजोरवा गीत.
इसके अलावा वर्तमान रंगमंच बघेलखंड के लोकनृत्य रूपों का भी प्रयोग किया जाता है. जिनमे से कुछ अनुष्ठानिक पर्वों पर नृत्य किया जाता है. तथा कुछ नृत्य पारंपरिक होने के साथ युद्ध कला की शैलियों से भी जुड़े हुए है. तथा विशेष जातियों द्वारा यह संपन्न किये जाते है.
लोक नृत्य इस प्रकार है-
करमा- यह गोंड व बैगा जाती का जनजातीय नृत्य है.
सैला- यह भी गोंड व बैगा जाती समूहों द्वारा किया जाता है.
अहीरराई लाठी- यह लगभग पुरे भारत में पाई जाने वाली यादव जाति द्वारा किया जाता है. लेकिन बघेलखंड में की जाने वाली यह अहीरराई लाठी परंपरा अद्भुत है.
सजनई- यह चमार, बसोर, कुम्हार जातियों द्वारा श्रम गीत व उत्सव नृत्य का मिला जुला रूप है.
कलशा नृत्य- यह मुख्य रूप से गडरिया जाती का जातीय नृत्य है.
गुदुम्बाजा नृत्य- यह घसिया जाति द्वारा बाद्य यंत्र बजाते हुए किया जाता है.
काली नृत्य- यह अनुष्ठानिक पर्व जावरा पर नृत्य किया जाता है.
बघेलखंड में वर्तमान में इन्हीं लोकगीत तथा लोकनृत्य का मिला-जुला रूप हमे नाटकों में देखने को मिलता है. बघेलखंड का अपना कोई ऐसा लोक प्रसिद्द लोकनाट्य नहीं है. लेकिन कुछ लोकनाट्यों की परंपरा यहाँ देखने को मिलती है. जिसमे ‘जिंदवा’  यह शादी के शुभ अवसर पर जब लड़के की बारात कन्या पक्ष के घर चली जाती है, तो घर की महिलाओं द्वारा यह कृत्य किया जाता है. जिसमे मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक की कथा होती है. तथा यहाँ की गाथा गायन परंपरा नाटकीय रूप में देखने को मिलती है.जिनमे नाटकीय तत्वों का समावेश होता है.